मनकामेश्वर मंदिर का इतिहास ,स्थानीय जगह का वर्णन और महाशिवरात्रि पूजन के नियम।

जय महाकाल 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
महाशिवरात्रि आ रही हैं आपके लिए हमने सबसे जाने माने मनकामेश्वर मंदिर की छोटी सी झलक दिखाई हैं।
मनकामेश्वर मंदिर🛕🛕🛕
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के डालीगंज में स्थित गोमती नदी के तट पर मनकामेश्वर महादेव मंदिर सनातन धर्म के लोगों की आस्था का एक बहुत बड़ा केंद्र बना हुआ है। देशभर से आने वाले पर्यटक और अन्य लोग इस मंदिर की प्राचीनता और प्रसिद्धि से प्रभाति होकर अपनी मनोकामना लेकर यहां आते रहते हैं। यहां आने वाले सभी भक्तगण भगवान शिव के सामने अपनी-अपनी मनोकामनाएं प्रकट करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि भगवान शिव उनकी हर इच्छा पूरी करें। यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं का भी यही कहना है कि उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

लखनऊ के डालीगंज क्षेत्र में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर मनकामेश्वर के नाम से गोमती नदी के तट पर बना हुआ है। पौराणिक समय में इस मंदिर के क्षेत्र में दूर-दूर तक घने जंगल हुआ करते थे। लेकिन वर्तमान में यह एक घनी आबादी वाला क्षेत्र बन चुका है। स्थानीय लोगों का बहुत बड़ा आस्था केंद्र हैं । लखनऊ में आने वाले हर व्यक्ति को इस मंदिर में इतनी आस्था हैं कि वह जब भी लखनऊ आता है तो बिना दर्शन किए वह नहीं रह पाता हैं इसलिए लखनऊ में गोमती नदी के बाएं तट पर स्थित शिव पार्वती का मंदिर सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है।
इस भव्य मंदिर को लेकर लोगों का यह कहना है कि इस मंदिर में जो कोई आता है वह खाली हाथ कभी नहीं लौटता है।

स्थानिय लोग इस मंदिर को एक विशेष, दिव्य और चमत्कारिक स्थान के रूप में मानते है। माना जाता है कि सच्चे मन से इस मंदिर में प्रवेश करते ही उन्‍हें विशेष प्रकार की शांति की अनुभूति होती है।

विशेषकर सावन के मौके पर इस मंदिर में स्थानिय भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। मान्यताओं के अनुसार यहां जो भी श्रद्धालु आरती में शामिल होकर भगवान से कामना कामना करता है वो पूरी हो जाती है। इसीलिए स्थानिय लोगों के लिए इस मंदिर में सुबह व शाम की आरती का विशेष महत्व माना जाता है। जिसमें काफी संख्या में भक्त हिस्सा लेते हैं।

 I want to see how much you know about Lucknow ?

गोमती नदी के किनारे स्थापित इस मंदिर का नाम मनकामेश्‍वर महादेव मंदिर है और जैसे कि मंदिर के इस नाम से ही इस बात का भी एहसास हो जाता है कि यहां मन से की गई प्रार्थना और मुराद कभी अधूरी नहीं रहती। कई लोग यहां आकर मनचाहे विवाह और संतानप्राप्ति की मनोकामना करते हैं और उसे पूरा होने पर विशेष अभिषेक भी करवाते हैं।

मंदिर के इतिहास के अनुसार 12वीं शताब्दी में मुगलों के द्वारा इस क्षेत्र पर आक्रमण करने के बाद इसका सारा कीमती सामान, सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात लूट लिया गया और इसकी उस भव्य इमारत को नष्ट कर दिया गया था। यवनों के उस भयंकर आक्रमण से मंदिर की रक्षा करने के लिए आये हजारों हिन्दू लोगों को मार दिया गया और मंदिर के गर्भगृह में स्थिापित उस समय के शिवलिंग को भी खंडित कर दिया गया।

भगवान मनकामेश्‍वर के इस मंदिर की उस दौर की भव्यता और इसके समृद्धशाली होने का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगलों के उस आक्रमण के समय तक इस मंदिर के शिखर पर 23 अलग-अलग आकार के स्वर्णकलश स्थापित हुआ करते थे जो इस क्षेत्र के किसी भी मंदिर से अधिक आकर्षक और विशेष थे।

उस आक्रण्मण के बाद धीरे-धीरे यहां मुगलों की सत्ता स्थापित हो चुकी थी। जिसके कारण यह मंदिर सैकड़ों सालों तक यूं ही खंडहर की तरह रहा। इसका दूर्भाग्य यह रहा कि इसमें नियमित रूप से पूजा-पाठ भी नहीं होने दी जा रही थी। जबकि आज से करीब 500 वर्ष पूर्व नागा साधुओं और जूना आखाड़ा के साधुओं और अन्य हिन्दूओं ने हजारों की संख्या में यहां एकत्र होकर मुगलों का विरोध किया और उनके कब्जे से इस मंदिर को मुक्त करवा लिया गया। उसके बाद इसके जिर्णोद्धार के रूप में मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था, जिसके बाद से माना जा रहा है कि आज तक यहां नियमित रूप से पूजा-पाठ होती आ रही है।






स्थानिय लोग इस मंदिर को एक विशेष, दिव्य और चमत्कारिक स्थान के रूप में मानते है। माना जाता है कि सच्चे मन से इस मंदिर में प्रवेश करते ही उन्‍हें विशेष प्रकार की शांति की अनुभूति होती है।

विशेषकर सावन के मौके पर इस मंदिर में स्थानिय भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। मान्यताओं के अनुसार यहां जो भी श्रद्धालु आरती में शामिल होकर भगवान से कामना कामना करता है वो पूरी हो जाती है। इसीलिए स्थानिय लोगों के लिए इस मंदिर में सुबह व शाम की आरती का विशेष महत्व माना जाता है। जिसमें काफी संख्या में भक्त हिस्सा लेते हैं।

गोमती नदी के किनारे स्थापित इस मंदिर का नाम मनकामेश्‍वर महादेव मंदिर है और जैसे कि मंदिर के इस नाम से ही इस बात का भी एहसास हो जाता है कि यहां मन से की गई प्रार्थना और मुराद कभी अधूरी नहीं रहती। कई लोग यहां आकर मनचाहे विवाह और संतानप्राप्ति की मनोकामना करते हैं और उसे पूरा होने पर विशेष अभिषेक भी करवाते हैं।


मंदिर के इतिहास के अनुसार 12वीं शताब्दी में मुगलों के द्वारा इस क्षेत्र पर आक्रमण करने के बाद इसका सारा कीमती सामान, सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात लूट लिया गया और इसकी उस भव्य इमारत को नष्ट कर दिया गया था। यवनों के उस भयंकर आक्रमण से मंदिर की रक्षा करने के लिए आये हजारों हिन्दू लोगों को मार दिया गया और मंदिर के गर्भगृह में स्थिापित उस समय के शिवलिंग को भी खंडित कर दिया गया।

भगवान मनकामेश्‍वर के इस मंदिर की उस दौर की भव्यता और इसके समृद्धशाली होने का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगलों के उस आक्रमण के समय तक इस मंदिर के शिखर पर 23 अलग-अलग आकार के स्वर्णकलश स्थापित हुआ करते थे जो इस क्षेत्र के किसी भी मंदिर से अधिक आकर्षक और विशेष थे।

उस आक्रण्मण के बाद धीरे-धीरे यहां मुगलों की सत्ता स्थापित हो चुकी थी। जिसके कारण यह मंदिर सैकड़ों सालों तक यूं ही खंडहर की तरह रहा। इसका दूर्भाग्य यह रहा कि इसमें नियमित रूप से पूजा-पाठ भी नहीं होने दी जा रही थी। जबकि आज से करीब 500 वर्ष पूर्व नागा साधुओं और जूना आखाड़ा के साधुओं और अन्य हिन्दूओं ने हजारों की संख्या में यहां एकत्र होकर मुगलों का विरोध किया और उनके कब्जे से इस मंदिर को मुक्त करवा लिया गया। उसके बाद इसके जिर्णोद्धार के रूप में मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था, जिसके बाद से माना जा रहा है कि आज तक यहां नियमित रूप से पूजा-पाठ होती आ रही है।
शिवजी की पूजा में रखें ध्यान
शिवजी का अभिषेक करने के लिए बहुत से भक्त दूध का प्रयोग करते हैं। अगर आपके पास कच्चा दूध मौजूद हो तभी शिवजी का अभिषेक दूध से करें। उबला हुआ और पैकेट वाला दूध पूजा में प्रयोग नहीं करना चाहिए। शिव पूजा में कच्चे दूध का ही प्रयोग करने का नियम बताया गया है। उबले हुए दूध से प्रयोग करने की बजाय ठंडे जल से ही पूजा करना उत्तम है।

महाशिवरात्रि पर मंदिर जाएं तो पूजा में ना करें यह भूल

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पहले त्रिपुंड, पूजा होगी अखंड
भगवान शिव की पूजा में त्रिपुंड का विशेष महत्व है। भगवान शिव की पूजा करने से पहले चंदन या विभूत तीन उंगलियों में लगाकर सिर के बायीं ओर से दायीं ओर की तरफ त्रिपुंड लगाएं। बिना त्रिपुंड लेपन किए शिव का अभिषेक करना बहुत फलदायी नहीं होता है। भगवान का अभिषेक करने के बाद उन्हें भी त्रिपुंड जरूर लगाएं। इससे आरोग्य और प्रसन्नता की प्राप्ति होती है।
शिवजी का अभिषेक
शिव पुराण में बताया गया है कि दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करने पर भगवान भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं। अगर आप इनमें से कोई वस्तु नहीं अर्पित कर पाते तो केवल जल में गंगाजल मिलाकर ही शिवजी का भक्ति भाव से अभिषेक करें। अभिषेक करते हुए महामृत्युंजय मंत्र का जप करते रहना चाहिए।
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शिवजी का अभिषेक
शिव पुराण में बताया गया है कि दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करने पर भगवान भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं। अगर आप इनमें से कोई वस्तु नहीं अर्पित कर पाते तो केवल जल में गंगाजल मिलाकर ही शिवजी का भक्ति भाव से अभिषेक करें। अभिषेक करते हुए महामृत्युंजय मंत्र का जप करते रहना चाहिए।
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पूजा में बेलपत्र ऐसे चढाने का नियम
शिवजी की पूजा में बेल के पत्तों का बड़ा ही महत्व है। बेल को साक्षात् शिव स्वरूप बताया गया है। महाशिवरात्रि व्रत की कथा में बताया गया है कि एक शिकारी वन्य जीवों के डर से बेल के वृक्ष पर रात भर बैठा रहा और नींद ना आए इसलिए बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा। संयोगवश उस स्थान पर शिवलिंग था। रात भर बेल के पत्ते उस शिवलिंग पर गिराते रहने से शिकारी के सामने भगवान शिव प्रकट हो गए और व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी बन गया। शिव पुराण में कहा गया है कि तीन पत्तों वाला शिवलिंग जो कट फटा ना हो उसे शिवलिंग पर चढ़ाने से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है। वैसे तो एक बेलपत्र अर्पित करने से ही भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन संभव हो तो 11 या 51 बेलपत्र जरूर चढ़ाएं।


क्षति से बचाएगा अक्षत

    
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क्षति से बचाएगा अक्षत
भगवान शिव ने अपनी पूजा में अक्षत के प्रयोग को महत्वपूर्ण बताया है। शिवलिंग के ऊपर अटूट चावल जरूर चढाएं। अगर संभव हो तो पीले रंग के वस्त्र में अटूट चावल सवा मुट्ठी रखकर शिवजी का अभिषेक करने के बाद शिवलिंग के पास रख दें। इसके बाद महामृत्युंजय मंत्र अथवा ओम नमः शिवाय मंत्र का जितना अधिक संभव हो जप करें। इस विधि से शिवलिंग की पूजा गृहस्थों के लिए शुभ माना गया है इससे आर्थिक समस्या दूर होती है।

शिवजी की पूजा में रखें ध्यान

 
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शिवजी की पूजा में रखें ध्यान
शिवजी का अभिषेक करने के लिए बहुत से भक्त दूध का प्रयोग करते हैं। अगर आपके पास कच्चा दूध मौजूद हो तभी शिवजी का अभिषेक दूध से करें। उबला हुआ और पैकेट वाला दूध पूजा में प्रयोग नहीं करना चाहिए। शिव पूजा में कच्चे दूध का ही प्रयोग करने का नियम बताया गया है। उबले हुए दूध से प्रयोग करने की बजाय ठंडे जल से ही पूजा करना उत्तम है।

महाशिवरात्रि व्रत के नियम

1 महाशिवरात्रि के दिन गेंहू, चावल, बेसन, मैदा आदि से बनी चीजों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
2 इस दिन मांस-मंदिरा काा सेवन नहीं करना चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं तो भगवान शिव आपसे रुष्ट भी हो सकते हैं।
3 यदि आप महाशिवरात्रि का व्रत रख रहें हैं तो आपको दिन में नहीं सोना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार दिन में सोने से आपको व्रत का फल नहीं मिलता है।
4 व्रत का पालन करते हुए ब्रह्मचर्य बनाए रखें।
5 व्रत के दौरान किसी के साथ भी वाद विवाद न करें और न ही ऐसे शब्दों का प्रयोग करें जिससे किसी का दिल दुखे।
6 आप दिन में चाय, दूध और फल आदि का सेवन कर सकते हैं।
7 शाम के वक्त सात्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं। इसके लिए साधारण नमक की जगह सेंधा नमक का प्रयोग कर सकते है।
8 शिवपुराण में महाशिवरात्रि में रात के समय जागरण करने का अधिक महत्व बताया गया है। यदि आप रात्रि जागरण करते हैं तो आपको दोगुना फल प्राप्त होगा। यदि आप जागरण नहीं कर पा रहें है तो सोते समय अपने सिरहाने तुलसी का पत्ता रख लें।
9. शिवरात्रि व्रत का नियम है कि इस व्रत को चतुर्दशी में ही आरंभ कर इसका पारण (समाप्ति) चतुर्दशी में ही करनी चाहिए। जो लोग व्रत रखेंगे वह रात्रि 1 वजकर 15 मिनट से पहले व्रत खोल सकते हैं। वैसे लोग जो दिन रात का व्रत रखते हैं वह अगले दिन सूर्यदय से 2 घंटे के अंदर व्रत का पारण कर सकते हैं।


         धन्यवाद
                                          By-Priya 🙏🏻🙏🏻
                                           जय महाकाल 

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